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अफीम की फसल में लगने वाली प्रमुख बीमारियां

Posted on January 14, 2025January 14, 2025

अफीम की बीमारियां

लहसुन अब पकने के दौर में जा चुकी है। कुछ प्रयोगो के परिणाम आने पर फिर से पोस्ट करूँगा। अफीम की फसल अभी युवा अवस्था में पहुँच चुकी है मौसम में उतार चढाव हो रहा है। ऐसे में किसानो को अफीम की बीमारियों के बारे में जानना आवश्यक है ताकि वो सही निदान करके सही उपचार कर सके। भारत में अफीम उत्पादक क्षेत्रों में कई तरह की बीमारियां लगती है जो निम्न प्रकार है।

1. डंपिंग ऑफ: यह बीमारी छोटे पौधों को प्रभावित करता है, जिससे वे सड़ जाते हैं।

2. डाउनी मिल्ड्यू या काली मस्सी : यह अफीम की सबसे गंभीर बीमारियों में से एक है, जो तने और फूलों के डंठलों की अतिवृद्धि और वक्रता का कारण बनती है। यह निचली पत्तियों से ऊपर की ओर फैलती है, और पूरी पत्ती की निचली सतह को राख जैसे पाउडर से ढक देती है। ठंडा और नमी युक्त मौसम इसके लिए बहुत अनुकूल होता है। इसका संक्रमण दो प्रकार से होता है पहला बाहरी संक्रमण और दूसरा आंतरिक संक्रमण।

3. पाउडरी मिल्ड्यू या सफ़ेद मस्सी : यह पत्तियों और डोडे पर सफेद पाउडर से पहचाना जाने वाला रोग है। यह रोग उत्पादन को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। इसके लिए गरम मौसम अनुकूल होता है।

4. फ्यूसैरियम विल्ट: यह रोग पौधे की संवहनी प्रणाली को प्रभावित करता है, जिससे मुरझाना, पीलापन और विकास में रुकावट होती है और अंत में मुरझाकर सुख जाते है।

5. लीफ ब्लाइट या पत्ती झुलसा : प्रमुख लक्षणों में पत्तियों पर फैले हुए पीले धब्बे शामिल हैं जो बाद में सुख जाते है।

6. लीफ स्पॉट : पत्ती पर क्लोरोटिक (पीले) क्षेत्र जो अक्सर कर्लिंग के साथ दिखाई देते है।

7. डोडा सड़न : हरे डोडे पर बड़े मखमली काले धब्बे दिखाई देते हैं, इस बीमारी से अफीम में मॉर्फिन, कोडीन और थेबेन की मात्रा कम हो जाती है।

8. अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट : फंगस अल्टरनेरिया प्रजाति के कारण होने वाला यह रोग पत्तियों, तनों और कैप्सूल पर गहरे भूरे से काले धब्बों के रूप में होता है। अगर इसका सही तरीके से नियंत्रण नहीं किया जाए तो उपज में बहुत कमी हो सकती है।

9. पोपी मोज़ेक वायरस : यह वायरल रोग पत्तियों पर मोज़ेक पैटर्न बनाता है, जिससे पौधे की वृद्धि रुक ​​जाती है और बीज और लेटेक्स की उपज कम हो जाती है। यह एफिड्स द्वारा फैलता है और एक बार फसल को संक्रमित करने के बाद इसे नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

10. रूट रॉट : रूट रॉट विभिन्न मिट्टी जनित कवकों के कारण हो सकता है, जिससे जड़ें और निचले तने सड़ जाते हैं। संक्रमित पौधे अक्सर मुरझा जाते हैं, पीले पड़ जाते हैं और विकास रुक जाता है।

11. स्टेम रॉट : स्टेम रॉट तने के निचले हिस्से को प्रभावित करता है, जिससे यह नरम और रंगहीन हो जाता है। यह पौधे को कमज़ोर कर सकता है और इसे गिरने (गिरने) के लिए अतिसंवेदनशील बना देता है। तना फटने की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है।

इसके अतिरिक्त कुछ और बीमारियां भी है जो कभी कभी दिखाई दे जाती है जैसे बैक्टीरियल सॉफ्ट रॉट, बैक्टीरियल लीफ स्पॉट, कॉलर रॉट आदि।

Yatin Mehta
@highlight

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